महाजनपद युग   - Chapter 3

दोस्तों अगर आपने पहले अध्याय नहीं पढ़े है तो chapter 2 आप यहाँ से पढ़ सकते है जिसमे हमने बड़ी ही सरल भाषा में वैदिक काल समजाया है।

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महाजनपद युग में 16 महाजनपद थे जिनकी सूचि निम्न है।

16 mahajanpad ki suchi

मगध महाजनपद :

प्रारम्भ में एक छोटा सा जनपद जो की अपनी राजनैतिक एकता व धर्म के कारण प्रसिद्ध था। यह राज्य वर्त्तमान पटना एवं गया के आसपास का क्षेत्र था। इसकी प्रारम्भिक राजधानी गिरिवज्र थी इसके बाद राजगृह व अंत मे पाटलिपुत्र स्थानांतरित कर दी गयी।

मगध पर शासन करने वाले राजवंश :

1 बृहद्रथ (समय ज्ञात नहीं है) - संस्थापक = बृहद्रथ

2 हर्यंक (544 ई. पु. - 412 ई. पु.) - संस्थापक = बिंबसार

3 शिशुनाग (412 ई. पु. - 344 ई. पु.) - संस्थापक = शिशुनाग

4 नन्द (344 ई. पु. - 323 ई. पु.) - संस्थापक = महापद्म नन्द

5 मौर्य (323 ई. पु. - 185 ई. पु.) - संस्थापक = चन्द्रगुप्त मौर्य 

ब्रहद्रथ राजवंश :

इसका संस्थापक ब्रहद्रथ था।  यह मगध पर शासन करने वाला प्रथम राजवंश था। शासको का क्रम - ब्रहद्रथ > जरासंध > ..अज्ञात.. >रिपूजन्य (अंतिम शाशक)

ब्रहद्रथ का पुत्र जरासंध जिसने भगवन श्रीकृष्ण के साथ 21 बार युद्ध किया परन्तु अंत में पाण्डुपुत्र भीम के हाथो मरा गया।  इस वंश का अंतिम शाशक रिपूजन्य हुआ जिसे उसीके सामंत भट्टिय ने मार डाला और मगध पर एक नए राजवंश हर्यंक वंश की स्थापना की।

हर्यंक राजवंश :

हर्यंक का प्रथम शासक सामंत भट्टीय था परन्तु इस वंश का सबसे प्रतापी शासक व वास्तविक संस्थापक बिम्बिसार को माना जाता है।

बिंबसार (544 से 492 ई.पु.):

मगध का प्रथम शासक जिसने वृहद् मगध साम्राज्य की नीव रखी  इसने अपने पडोसी राज्यों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये तथा पहली बार मगध को राजनैतक एकता के सूत्र में बांधने का प्रयास किया।

इसके द्वारा किये गए विवाह क्रमशः काशी राजकुमारी कौशल देवी , वैशाली की राजकुमारी चेल्लना / वपवि , भद्र (पंजाब) की राजकुमारी क्षेमा

अवन्ति नरेश प्रद्योत के पांडुरोग से पीड़ित हो जाने पर अपने राजवैद्य जीवक को भेजा तथा उसे इस रोग से मुक्त करवाया

अज्ञातशत्रु (492 ई.पु. - 460 ई.पु.) :

अज्ञातशत्रु का उपनाम कुणिक था। इसी के शासन काल में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया।

NOTE: इसी के शासन काल में गौतम बुद्ध, महावीर, व मोखलीपुत्र पुत्र गौसल को निर्वाण की प्राप्ति हुई।

अज्ञातशत्रु ने अपने मंत्री वात्स्कार की सहायता से वैशाली के लिच्छीविओ पर विजय प्राप्त की।  उसने  लगातार 16 वर्ष तक युद्ध लड़ा । अज्ञातशत्रु  ने अपने शासनकाल के अंतिम समय में सोन व गंगा के किनारे एक दुर्ग का निर्माण करवाया। फिर अज्ञातशत्रु को उसके पुत्र उदायिन ने मार डाला और स्वयं शासक बन गया।

NOTE: अज्ञातशत्रु को भारतीय इतिहास का प्रथम पितृहन्ता शासक कहा जाता है जबकि उदायिन को द्वितीय पितृहन्ता माना गया है। भारतीय इतिहास में पहला ऐसा राजवंश था जिसमे सर्वाधिक पितृहन्ता हुए।

उदायिन (459 ई.पु. - 432 ई.पु.) :

इसने पाटलिपुत्र नगर की स्थापना की तथा इसे अपनी राजधानी बनाया।

उदयिन के बाद  अनिरुद्ध मुंड व नागदशक शासक बने तथा इन्होने 412 ई.पु. तक शासन किया नागदशक को बनारस के राज्यपाल शिशुनाग ने मार डाला, और शिशुनाग वंश की स्थापना कर स्वयं शासक बना  

शिशुनाग राजवंश :

शासको का क्रम  - शिशुनाग (412 - 393 ई. पू.)  > कालाशोक(393 - 361 ई. पू.) > नन्दिवर्धन + 9 भाई (361 - 344 ई. पू.)

शिशुनाग :

 यह राजा बनने से पूर्व बनारस का राज्यपाल था। इसने  पहली बार मगध के लिए 2  राजधानिया बनवाई 1 - राजगृह और 2 - वैशाली

कालाशोक :

इसका उपनाम काकवर्ण था। इसने अपनी राजधानी एक बार पुनः पाटलिपुत्र को बनाया जो की अंतिम रूप से मगध की राजधानी बानी। इसी के शासन काल में 383 ई. पू.  में  द्वितीय बुध संगीति का आयोजन वैशाली में किया गया।

यूनानी इतिहासकार कर्टियस के अनुसार कालाशोक के दरबार में अग्रसेन का पिता हजाम था, उसकी मृत्यु के बाद अग्रसेन राजा का हजाम बना, और रानी का प्रेमी बन बैठा उसने रानी की सहायता से कालाशोक व उसके समस्त पुत्रो को मौत के घाट उतार दिया। यही अग्रसेन आगे चल कर महापद्मनंद के नाम से विख्यात हुआ तथा उसने मगध पर एक नए राजवंश नन्द वंश की स्थापना की।

नन्द राजवंश :  344 ई. पू - 323 ई. पू.

संस्थापक: महापद्मनंद

शासक: महापद्मनंद > --- अज्ञात --- > घनानंद

महापद्मनंद :

 नन्द वंश का प्रथम शासक था।  इसने सभी क्षत्रियो का नाश करने की शपत ली अतः इसे परशुराम की भाती सर्वेक्षयान्तक भी कहा जाता है।  अनगिनत सेना का स्वामी  कारण इसे  अग्रसेन कहा गया। खारवेल के हाथी गुम्भा अभिलेख के अनुसार इसने कलिंग के उप्पेर विजय प्राप्त की।

महापद्मनंद के 8 पुत्र थे अतः नन्द सहित इन समस्त राजाओ को नवनन्द कहा जाता था। 

घनानंद –

अतुल्य धन सम्पति होने के कारण इसे घनान्द कहा जाता था।  यह नन्द वंश का अंतिम शासक था तथा सिकंदर का समकालीन था। इसकी सेना की विशालता को देखते हुए ही सिकंदर की सेना ने व्यास नदी को पार करने से माना करदिया।

इसने तक्षशिला के आचार्य कौटिल्य का अपमान किया अतः कौटिल्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य  व घनान्द के मंत्रियो की सहायता से इसका समूल विनाश करदिया। और मगध पर एक नए राजवंश मौर्य वंश की नीव डाली।

घनानंद के समय ही  सिकंदर ने 326 ई. पू.  के आस पास भारत पर आक्रमण किया। तक्षशिला के शासक आम्बी ने बिना लाडे ही सिकंदर के सामने आत्मसमर्पण करदिया। और वह उसका सहयोगी बन गया अतः आम्बी को भारतीय इतिहास का प्रथम देशद्रोही शासक कहा जाता है।

सिकंदर ने झेलम व चेनाब नदियों के बिच स्थित पुरु राज्य पर आक्रमण किया  जिसका शासक पोरस था इन दोनों के बिच झेलम नदी के किनारे युद्ध लड़ा गया। अतः इस युद्ध को झेलम का युद्ध या वितस्ता का युद्ध कहा जाता है। यूनानीओं ने इसे हाईडेस्पीज का युद्ध कहा है


मौर्य काल हम अगले अध्याय में पढ़ेंगे 

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भारत का इतिहास - अध्याय 3 : महाजनपद युग

भारत का इतिहास - अध्याय 3 : महाजनपद युग

Created By : Er. Nikhar

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uploaded on: 08-06-2020


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